बोल उठी बिटिया – पाठ-13
मैं बचपन को बुला रही थी,
बोल उठी बिटिया मेरी ;
नंदनवन-सी फूल उठी,
यह छोटी-सी कुटिया मेरी ।
’माँ ओ’ कहकर बुला रही थी,
मिट्टी खाकर आयी थी ;
कुछ मुँह में, कुछ लिये हाथ में,
मुझे दिखाने लाई थी ।
पुलक रहे थे अंग र्दगों में,
कौतूहल था छलक रहा ;
मुँ पर भी आहलाद लालीमा,
विजय गर्व था झलक रहा ।
ಪದ್ಯದ ಮಾದರಿ ಗಾಯನ
ಪದ್ಯದ ಮಾದರಿ ಗಾಯನಕ್ಕೆ ಮೇಲಿನ ನೀಲಿ ಬಣ್ಣದ ಲಿಂಕ್ ಮೇಲೆ ಕ್ಲಿಕ್ ಮಾಡಿ
कवि परिचय
सुभद्रा कुमारी चौहान हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री हैं। अपका जन्म 1904 में हुआ और मृत्यु 1948 को एक कार दुर्धटना में हुई | आपकी काव्य पंक्तियां ‘खुब लेडी मर्दानी वह झँसीवाली रानी थी’ प्रसिद्ध हैं | ‘मुकुल’ आपका कविता संग्रह है । इसक अलावा आपका कहानी संकलन और शिशु आहित्य भी प्रकाशित है।
शब्दार्थ
कुटिया – कुटीर
‘माँ ओ‘ – माँ ओ माँ
कौतुहल – आश्चर्य, प्रबल इच्छा
छलकना – उमड़ना
आहलाद – आनंद, हर्ष
लालिमा – प्रसन्नता, लाल रंग
झलकना – प्रकट हाना
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